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विकास और पर्यावरण संरक्षण का संतुलन पीईकेबी कोल ब्लॉक

548 हेक्टेयर पर पुनर्जनन के माध्यम से जंगल विकसित किए

रायपुर.। छत्तीसगढ़ का वन क्षेत्र न केवल जैव विविधता का खजाना है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये जंगल कार्बन अवशोषण, जल संरक्षण और वन्यजीवों के आवास के रूप में कार्य करते है। हालांकि, आर्थिक विकास और ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खनन जैसी गतिविधियां भी आवश्यक है। छत्तीसगढ़ में 1980 से अब तक खनन के लिए केवल 28.700 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग हुआ है, जो कुल वन क्षेत्र का 0.5% से भी कम है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि राज्य सरकार और परियोजना संचालक वन संरक्षण को प्राथमिकता दे रहे हैं। हसदेव अरण्य क्षेत्र में स्थित पीईकवी कोल ब्लॉक परियोजना मुख्य रूप से राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम की बिजली आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शुरू की गई थी। राजस्थान की 80% से अधिक बिजली आपूर्ति इस क्षेत्र से प्राप्त कोयले पर निर्भर है।

छत्तीसगढ़, भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपनी प्राकृतिक समृद्धि और जैव विविधता के लिए जाना जाता है। लगभग 1.35 करोड़ हेक्टेयर के विशाल क्षेत्रफल में फैला यह राज्य प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है,

जिसमें से 59.82 लाख हेक्टेयर क्षेत्र घने वनों से आच्छादित है। ये जंगल न केवल पर्यावरणीय संतुलन के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदायों और वन्यजीवों के लिए जीवन का आधार भी हैं। दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ खनिज संसाधनों से भी समृद्ध है, और इन संसाधनों का उपयोग देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जा रहा है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण परियोजना है हसदेव अरण्य क्षेत्र में स्थित परसा ईस्ट केते बासन (पीईकेबी) कोल ब्लॉक, जो विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने का एक अनूठा उदाहरण है। छत्तीसगढ़ का वन क्षेत्र न केवल जैव विविधता का खजाना है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये जंगल कार्बन अवशोषण, जल संरक्षण और वन्यजीवों के आवास के रूप में कार्य करते हैं। हालांकि, आर्थिक विकास और ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खनन जैसी गतिविधियां भी आवश्यक हैं। छत्तीसगढ़ में 1980 से अब तक खनन के लिए केवल 28,700 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग हुआ है, जो कुल वन क्षेत्र का 0.5% से भी कम है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि राज्य सरकार और परियोजना संचालक वन संरक्षण को प्राथमिकता दे रहे हैं। हसदेव अरण्य क्षेत्र में स्थित पीईकेबी कोल ब्लॉक परियोजना मुख्य रूप से राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन

निगम की बिजली आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शुरू की गई थी। राजस्थान की 80% से अधिक बिजली आपूर्ति इस क्षेत्र से प्राप्त कोयले पर निर्भर है। इस परियोजना में खनन कार्यों का संचालन अदाणी समूह द्वारा माइन डेवलपर के रूप में किया जा रहा है। यह परियोजना नियंत्रित और पर्यावरणीय मापदंडों के अंतर्गत संचालित होती है, जिसमें हर वर्ष केवल 80 से 90 हेक्टेयर भूमि पर खनन किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि पूरे जंगल पर अनावश्यक दबाव न पड़े। पीईकेबी परियोजना में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है। खनन प्रभावित क्षेत्र के दोगुने क्षेत्रफल पर वृक्षारोपण किया जा रहा है, जिसमें प्रति हेक्टेयर 1,100 पेड़ लगाए जाते हैं। अब तक 1,898 हेक्टेयर भूमि पर खनन हुआ है, जिसमें से 548 हेक्टेयर पर पुनर्जनन के माध्यम से जंगल विकसित किए गए हैं। यह केवल कागजी प्रक्रिया नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर लागू किया गया कार्य है। इसके अतिरिक्त, परियोजना लागत का 2% हिस्सा जल, मृदा और वन्यजीव संरक्षण के लिए अनिवार्य रूप से खर्च किया जाता है। इसमें तालाबों का गहरीकरण, जल संरक्षण योजनाएं, जैव विविधता विकास और पक्षियों के लिए प्राकृतिक आवास निर्माण जैसी गतिविधियां शामिल हैं। पीईकेबी परियोजना केवल कोयला खनन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्थानीय समुदायों के सामाजिक और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। इस परियोजना ने 10,000 से अधिक लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार प्रदान किया है। ये रोजगार खनन के साथ-साथ परिवहन, सफाई, निर्माण, रखरखाव, खानपान, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे सहायक क्षेत्रों में भी उपलब्ध हैं। स्थानीय लोगों को प्रति हेक्टेयर 40 से 50 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाता है, और 11 से 16 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की राशि कैम्पा फंड में जमा की जाती है, जिसका उपयोग वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के लिए किया जाता है।

परियोजना के तहत शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। क्षेत्र में एक सीबीएसई स्कूल की स्थापना की गई है, जहां 1,050 से अधिक बच्चे निःशुल्क मिड-डे मील, किताबें, ड्रेस और परिवहन जैसी सुविधाओं के साथ पढ़ाई कर रहे हैं। इससे न केवल शिक्षा का स्तर सुधरा है, बल्कि बाल मजदूरी और अशिक्षा जैसी सामाजिक समस्याओं में भी कमी आई है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में, मोबाइल हॉस्पिटल, 24 घंटे एंबुलेंस सेवा और निःशुल्क चिकित्सा शिविरों ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाया है। पहले गंभीर रूप लेने वाली बीमारियां अब समय पर इलाज के कारण नियंत्रित हो रही हैं।

महिलाओं के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप और महिला बचत समितियों का गठन किया गया है, जो उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के साथ साथ निर्णय लेने की प्रक्रिया में सशक्त बना रहा है। इन समितियों ने महिलाओं को न केवल आर्थिक स्वतंत्रता दी है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी उनकी स्थिति को मजबूत किया है। पीईकेबी परियोजना को लेकर कुछ पर्यावरणविदों और स्थानीय संगठनों ने आपत्तियां दर्ज की हैं। उनका कहना है कि खनन से जैव विविधता को नुकसान हो सकता है और आदिवासी समुदायों का पारंपरिक जीवन प्रभावित हो सकता है। ये चिंताएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन परियोजना के आंकड़े और

कार्यप्रणाली दर्शाते हैं कि विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है। खनन समाप्त होने के बाद उसी भूमि पर दोबारा जंगल विकसित करने की प्रक्रिया ने यह साबित किया है कि यह परियोजना केवल संसाधनों के दोहन तक सीमित नहीं है। हसदेव अरण्य की पीईकेबी परियोजना यह दर्शाती है कि औद्योगिक विकास और पर्यावरण संरक्षण साथ-साथ चल सकते हैं। यह परियोजना न केवल राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति कर रही है, बल्कि स्थानीय स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में भी योगदान दे रही है। खनन के बाद भूमि का पुनर्जनन, वृक्षारोपण और जैव विविधता संरक्षण के लिए किए गए प्रयास इस परियोजना को सतत विकास का एक मॉडल बनाते हैं। छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य और संसाधनों का खजाना है, और पीईकेबी कोल ब्लॉक परियोजना इस क्षेत्र में विकास और संरक्षण के बीच संतुलन का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। यह परियोजना दर्शाती है कि यदि पारदर्शिता, पर्यावरणीय जिम्मेदारी और सामाजिक सहयोग के साथ परियोजनाओं को लागू किया जाए, तो प्रकृति और प्रगति दोनों को संरक्षित रखा जा सकता है। यह न केवल वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों को पूरा कर रही है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक स्थायी और समृद्ध पर्यावरण सुनिश्चित कर रही है। हसदेव अरण्य की यह परियोजना इस बात का प्रमाण है कि सही दृष्टिकोण और कार्यप्रणाली के साथ विकास और पर्यावरण संरक्षण एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।

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