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गन्ने पर रिसर्च के लिए ICAR में अलग टीम बनाई जाएगीः शिवराज सिंह चौहान

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि देश में गन्ने पर रिसर्च के लिए आईसीएआर (ICAR) में अलग टीम बनाई जाएगी। यह टीम देखेगी कि गन्ने की पॉलिसी कैसी होनी चाहिए। केंद्रीय मंत्री देश में गन्ने की अर्थव्यवस्था पर आयोजित एक राष्ट्रीय विमर्श को संबोधित कर रहे थे। यह आयोजन कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को समर्पित मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस और नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज (NFCSF) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के सहयोग से किया है।

कृषि मंत्री ने कहा, मेरे लिए किसान और खेती से बड़ा कुछ नहीं है। यही मेरे जीवन का मिशन है। उन्होंने कहा कि हितधारकों से परामर्श के बाद ही राज्यों और देश की कृषि नीति में जरूरत के मुताबिक संशोधन करेंगे। इसमें किसान, इंडस्ट्री और वैज्ञानिक सबके साथ चर्चा होगी।

विकसित कृषि संकल्प अभियान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, मेरठ में किसानों ने बताया कि गन्ने की 238 वैरायटी में चीनी की मात्रा अच्छी है, लेकिन इसमें रेड रॉट की समस्या आ गई है। रोग ने इसे घाटे का धंधा बना दिया। हमें सोचना पड़ेगा कि एक वैरायटी कितने साल चलेगी। हमें साथ-साथ दूसरी वैरायटी पर भी काम करना पड़ेगा। एक वैरायटी में समस्या हो तो दूसरी तैयार रहे।

मंत्री ने कहा, समस्याओं से हम परिचित हैं। हमें उत्पादन बढ़ाना है, मैकेनाइजेशन की जरूरत है, बायो प्रोडक्ट में और क्या कर सकते हैं इस पर विचार करना है। यह भी देखना है कि लागत कैसे घटाएं, चीनी की मात्रा कैसे बढ़े, चीनी की रिकवरी ज्यादा कैसे हो।

उन्होंने कहा, एक महत्वपूर्ण सवाल है रोगों का मुकाबला करना। नई वैरायटी आती है तो रोग भी आते हैं। पानी के इस्तेमाल का भी सवाल है। पानी की आवश्यकता को हम कैसे कम कर सकते हैं। इसके लिए ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ सोच का आधार होना चाहिए। इसके साथ यह भी देखना है कि किसान उतना खर्च करेगा कैसे, क्योंकि ड्रिप बिछाने के लिए पैसे चाहिए।

केंद्रीय मंत्री ने कहा, बायो प्रोडक्ट और कैसे उपयोगी हो सकते हैं। एथेनॉल का अपना महत्व है। मोलासेस की अपनी उपयोगिता है। कौन से अन्य प्रोडक्ट बन सकते हैं जिनसे किसानों का लाभ बढ़े। यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या प्राकृतिक खेती फर्टिलाइजर की समस्या में सहायक हो सकती है।

उन्होंने कहा कि मोनो क्रॉपिंग की समस्या अनेक रोगों को नियंत्रण देती है। इससे नाइट्रोजन फिक्सेशन की समस्या भी उपजती है। एक फसल पोषक तत्वों को कम कर देती है। यह देखा जाना चाहिए कि मोनोक्रेपिंग की जगह इंटरक्रॉपिंग कितनी व्यावहारिक है।

वैल्यू चेन एक बड़ा सवाल है। इसे लेकर किसानों की शिकायत व्यवहारिक है। किसानों की शिकायत अक्सर रेट और पेमेंट की होती है। मिलों की अपनी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन किसानों को गन्ना के भुगतान में देरी होती है। किसान कितने दिनों तक इंतजार करेगा।

मजदूरी की समस्या है। आजकल मजदूर आसानी से नहीं मिलते। यह देखना चाहिए कि क्या हम ट्रेनिंग देकर कैपेसिटी बिल्डिंग का काम कर सकते हैं। मैकेनाइजेशन डिवीजन भी इस पर सोचे कि कम मेहनत से कैसे गन्ना काटा जा सकता है।

कृषि मंत्री ने कहा, आईसीएआर को मैं कहना चाहता हूं कि गन्ना रिसर्च के लिए अलग टीम बनाएं। वह टीम व्यावहारिक समस्याओं पर गौर करे। इसलिए किसान और इंडस्ट्री के मतलब की रिसर्च होनी चाहिए। जिस रिसर्च का किसान को फायदा नहीं, उसका कोई मतलब नहीं।

कृषि मंत्री ने कहा कि आज के विमर्श में आप जो बातें बताएंगे, उसके आधार पर हम एक टीम बनाएंगे। वह टीम विचार करेगी कि गन्ने की क्या पॉलिसी होनी चाहिए। अगर आज का विमर्श भी हमें परफेक्ट नहीं लगा तो हम एक और विमर्श करेंगे। जो सुझाव आएंगे उन्हें मैं गंभीरता से देखूंगा, छोटे-छोटे ग्रुप में एक्सपर्ट के साथ बैठूंगा। आपके सुझाव हमारे लिए गन्ना पॉलिसी बनाने का आधार होगा।

उन्होंने कहा, हमारा उद्देश्य है गन्ने को भारत की कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण कारक बनाना, और इसमें जितनी बाधाएं हैं उसे दूर करना। आज का विमर्श गन्ने पर रोडमैप बनाने का प्रारंभ है। मुझे परिणाम मूलक विमर्श चाहिए। आप विचार कीजिए, रिपोर्ट तैयार कीजिए और रिपोर्ट मुझे सौंपिए। कृषि विभाग अगले 5 साल के लिए योजना बनाने वाला है। उससे पहले यह विमर्श बहुत महत्वपूर्ण है। आपकी रिपोर्ट ऐसी हो जो गन्ने को और कृषि को नई दिशा दे सके।

आईसीएआर प्रमुख ने बताए रिसर्च के चार प्रमुख फोकस

इसी सम्मेलन में आईसीएआर महानिदेशक और डेयर सचिव डॉ. एम.एल. जाट ने रिसर्च के लिए चार प्रमुख फोकस बताए- पहला, क्या फोकस करना है, दूसरा रिसर्च आगे ले जाने के लिए क्या डेवलपमेंटल इशू हैं, तीसरा इंडस्ट्री से संबंधित क्या मुद्दे हैं और चौथा, पॉलिसी से संबंधित क्या कदम उठाए जाने चाहिए।

डॉ. जाट ने कहा कि गन्ने में पानी का काफी उपयोग होता है, फर्टिलाइजर का काफी इस्तेमाल होता है और मजदूर की समस्या है। मोनोक्रॉपिंग की वजह से पेस्ट और बीमारियों की समस्या है। इंडस्ट्री और मार्केट से संबंधित समस्या है।

पानी की समस्या दूर करने के लिए कई अनुसंधान हुए हैं और हो रहे हैं। महाराष्ट्र की तरह अन्य जगहों पर भी गन्ने में माइक्रो इरिगेशन हो तो पानी की बचत होगी। जिस तरीके से फर्टिलाइजर का इस्तेमाल होता है वह ठीक नहीं है। उर्वरकों की एफिशिएंसी बढ़ाना जरूरी है। गन्ने की पराली पर काम करना भी जरूरी है।

उन्होंने कहा कि मोनोक्रॉपिंग दूर करने के लिए विविधीकरण आवश्यक है। गन्ने के साथ इंटरक्रॉपिंग में दलहन और तिलहन का प्रयोग किया जा सकता है। देश में दलहन और तिलहन की पैदावार बढ़ाने की कोशिश भी चल रही है। इंटरक्रॉपिंग से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा मिलेगा। गन्ने में जितना खाद पानी देते हैं, उसी से मूंगफली हो जाएगी। इससे नाइट्रोजन फिक्सेशन का गन्ने को फायदा मिलेगा।

 

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