
गन्ने की पत्तियों में पीलापन? किसान तुरंत करें ये उपाय, नहीं तो हो सकता है बड़ा नुकसान
इन दिनों गन्ने की फसल में पत्तियों के पीलेपन शिकायतें मिल रही है। यह गन्ना किसानों के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है। गन्ने की पत्तियों में पीलापन (Yellowing of Sugarcane Leaves) गन्ने के रोग का संकेत हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर ने किसानों को इस रोग व कीट से बचाव के लिए विस्तृत सलाह और नियंत्रण उपाय जारी किए हैं। यदि आप भी एक गन्ना किसान हैं तो आपके लिए भी इसके बारे में जानना बेहद जरूरी हो जाता है, क्योंकि यदि समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं किया जाए तो पैदावार में भारी गिरावट आने की संभावना रहती है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को गन्ने का पीलापन के लक्षण, नियंत्रण के उपाय व सावधानियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, तो आइए जानते हैं, इसके बारे में।
क्यों हो रही है गन्ने की पत्तियों में पीलेपन की शिकायत
किसानों को गन्ने की फसल में पीलापन दिखाई दे रहा है तो इसे उन्हें हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह उकठा रोग या जड़ बेधक कीट का संकेत हो सकता है, जो धीरे-धीरे पूरी फसल को प्रभावित कर सकता है। यदि समय रहते रोकथाम के उपाय नहीं किए गए तो उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है। किसानों को जानकारी के लिए बता दें कि गन्ने की पत्तियों में पीलापन आने के मुख्य रूप से दो कारण होते हैं। वे हैं, उकठा रोग (विल्ट) और जड़ बेधक कीट (Root Borer Pest)। ये दोनों समस्या अकेले या एक साथ भी फसल को प्रभावित कर सकती हैं।
क्या है गन्ने का उकठा रोग (Wilt)
गन्ना शोध परिषद के अनुसार, उकठा एक मृदा जनित रोग है जो फ्यूजेरियम सैकेरी नामक फफूंद के कारण होता है। यह रोग गन्ने के जड़ों और तनों को प्रभावित करता है, जिससे पोषक तत्वों का प्रवाह रुक जाता है और पौधे मुरझाने लगते हैं।
गन्ने में उकठा रोग के क्या होते हैं लक्षण
गन्ने की फसल में उकठा रोग लगने पर उसमें कई प्रकार के लक्षण दिखाई देने लगते हैं, इनमें से प्रमुख लक्षण इस प्रकार से हैं:
- उकठा रोग से ग्रसित होने पर पत्तियों में पीलापन आ जाता है व ये बदरंग हो जाती हैं।
- पत्तियां ऊपर से झुलस कर सूखने लग जाती हैं।
- तनों को चीरने पर अंदर हल्की गुलाबी/लाल धारियां दिखाई देती हैं।
- पिथ (तनों का अंदरूनी भाग) में नाव के आकार की कैविटी दिखाई देती है।
- तनों का सिकुड़ जाना और पत्तियों की मध्य शिराओं का पीला पड़ना आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
कैसे करें उकठा रोग पर नियंत्रण के उपाय
गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर ने गन्ने की खेती करने वाले किसानों को सलाह दी है कि वे उकठा रोग के नियंत्रण के लिए थायोफेनेट मिथाइल 70 WP की 1.3 ग्राम/लीटर पानी या कार्बेंडाजिम 50 WP की 2 ग्राम/लीटर पानी घोल को जड़ों के पास ड्रेंचिंग करें – प्रति एकड़ 400 लीटर पानी में 520–800 ग्राम दवा मिलाएं, दो बार ड्रेंचिंग करें, हर बार के बाद हल्की सिंचाई जरूरी करें। इस बात का ध्यान रखें कि ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग न करें, क्योंकि यह मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्मजीवों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा किसान सुझाए गए कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का संतुलित उपयोग करें और खेत में लगातार निगरानी बनाए रखें।
क्या है गन्ने का जड़ बेधक कीट
गन्ने का यह कीट अप्रैल से अक्टूबर के बीच अधिक सक्रिय रहता है, विशेषकर शुष्क वातावरण में। इसकी सुंडी अवस्था जड़ों को खाकर गन्ने को नुकसान पहुंचाती है। यह कीट गन्ने के नवोदित पौध को तेजी से प्रभावित करता है और इसकी पहचान सफेद रंग की बिना धारियों वाली सुंडी और गहरे भूरे रंग के सिर से होती है।
कैसे पहचाने जड़ बेधक कीट के लक्षण
जड़ बेधक कीट एक सफेद रंग की सुंडी होती है और इसकी पीठ पर कोई धारियां नहीं होती हैं। यह कीट अप्रैल से अक्टूबर तक सक्रिय रहता है। यह पौधों की जड़ों और नवोदित पौधों को नुकसान पहुंचाता है। इसके प्रकोप से पौधे धीरे-धीरे मुरझाने लगते हैं और पत्तियां पीली हो जाती हैं।
कैसे करें जड़ बेधक कीट पर नियंत्रण
जड़ बेधक कीट के नियंत्रण के लिए किसान नीचे दिए गए उपlयों को अपना सकते हैं, जो इस प्रकार से हैं:
- पर्याप्त नमी की स्थिति में फिप्रोनिल 0.3 जी की 8–10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें
- वैकल्पिक रूप से निम्न दवाएं 750 लीटर पानी के साथ मिलाकर ड्रेंच कर सकते हैं जिसमें क्लोरोपायरीफॉस 20% ईसी – 2 लीटर प्रति एकड़, क्लोरोपायरीफॉस 50% ईसी – 1 लीटर प्रति एकड़ और इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL – 200 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें।
- इन उपायों से गन्ने में कीटों की संख्या में कमी आती है और फसल की वृद्धि पुनः शुरू हो सकती है।
जैविक उर्वरकों के प्रयोग की भी दी सलाह
गन्ना शोध परिषद ने जैविक उर्वरकों के प्रयोग को भी प्रोत्साहित किया है जिससे मिट्टी में लाभदायक सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बनी रहे और रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़े। इससे उकठा रोग व अन्य मृदा जनित समस्याओं से बचाव में सहायता मिलती है।



