
इंजीनियरिंग छोड़ किसान बना युवाः इजरायली तकनीक से उगा रहा धान, आम, चीकू और अमरूद, 50 लोगों को दे रहा रोजगार
जगदलपुर। बस्तर, जिसे अब भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में देखा जाता है, वहां अब बदलाव की हवा बह रही है। जहां एक समय यहां के युवा डिग्रियां लेकर महानगरों की ओर पलायन कर रहे थे, वहीं अब कई युवा मल्टीनेशनल कंपनियों की नौकरियां छोड़कर खेती को अपना भविष्य बना रहे हैं। ऐसा ही एक नाम है 28 वर्षीय विवेक भारत का, जिन्होंने इंजीनियर की पहचान छोड़ अब खुद को एक सफल किसान के रूप में स्थापित कर लिया है। वे न केवल खेती में तरक्की कर रहे हैं, बल्कि करीब 50 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।
लाखों का पैकेज छोड़ खेती की राह
विवेक ने बताया कि उन्होंने चार साल पहले भिलाई से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी। इसके बाद वे गोवा की एक ऑटोमोबाइल कंपनी में काम करने लगे, जहां उन्हें सालाना 8 लाख रुपये से अधिक का पैकेज मिल रहा था। हालांकि उनका मन हमेशा से खेती की ओर था। बचपन में उनकी दादी उन्हें खेतों में लेकर जाती थीं और खेती के गुर सिखाती थीं। यही लगाव उन्हें वापस खेतों तक ले आया।
शुरुआती संघर्ष और फसल की चुनौतियाँ
नौकरी छोड़कर जब विवेक ने खेती शुरू की, तो अनुभव की कमी के चलते उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। धान की फसल में तना छेदक, बंकी और झुलसा जैसी बीमारियाँ लगीं। अमरूद में एंथ्रेक्नोज, उकठा और छाल भक्षक कीट ने नुकसान पहुँचाया, जबकि चीकू की फसल में पत्ती धब्बा, चपटा अंग और सूटी मोल्ड रोग का असर दिखा। विवेक ने इन समस्याओं से निपटने के लिए कृषि विशेषज्ञों और अनुभवी किसानों की मदद ली और कीटनाशकों का सही तरीके से इस्तेमाल किया ।
इजराइली तकनीक से खेती में बढ़ा मुनाफा
शुरुआत में विवेक ने भिंडी और करेले जैसी सब्जियों की खेती की, लेकिन बाद में उन्होंने सुगंधित धान की किस्में जैसे जवाफुल और तुलसी मंजरी लगाना शुरू किया। साथ ही आम, अमरूद, चीकू और शहतूत जैसे फलदार पौधे भी लगाए। उन्होंने मल्चिंग तकनीक अपनाई, जो इजराइली खेती पद्धति का हिस्सा है। इससे न केवल उत्पादन बढ़ा, बल्कि लागत भी कम हुई और मुनाफा कई गुना बढ़ गया।
आज विवेक न सिर्फ खुद एक सफल किसान हैं, बल्कि स्थानीय लोगों को भी रोजगार देकर बस्तर के विकास में योगदान दे रहे हैं। उनका यह सफर कई युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गया है।



